Tuesday 4 February 2014

सूक्त - 40

[ऋषि- घोषा काक्षीवती । देवता- अश्विनीकुमार । छन्द- जगती ।]

9210
रथं यान्तं कुह को ह वां नरा प्रति  द्युमन्तं  सुविताय  भूषति ।
प्रातर्यावाणं विभ्वं विशेविशे वस्तोर्वस्तोर्वहमानं धिया शमि॥1॥

अध्यापक  का  अभि-नन्दन है वह ही जगती का शिक्षक है ।
वह ही सबका भाग्य-विधाता वह  परम्परा  का रक्षक  है॥1॥

9211
कुह स्विद्दोषा कुह वस्तोरश्विना कुहाभिपित्वं करतः कुहोषतुः ।
को वां शयुत्रा विधवेव देवरं मर्यं न योषा कृणुते सधस्थ आ॥2॥

जीवन  जीना  भी  एक कला है उचित समय पर सभी कर्म हो ।
सुन्दर-सटीक हम नियम बनायें ध्येय सदा कर्तव्य-धर्म हो॥2॥

9212
प्रातर्जरेथे जरणेव कापया वस्तोर्वस्तोर्यजता  गच्छथो  गृहम् ।
कस्य ध्वस्त्रा भवथःकस्य वा नरा राजपुत्रेव सवनाव गच्छथः॥3॥

हे  गुरु - वर  तुम  ही  वरेण्य  हो  बचपन  को  देते  हो  आकार ।
गीली-माटी से  विविध रूप  रच  कहलाते  हो  तुम्हीं  कुम्हार ॥3॥

9213
युवां  मृगेव  वारणा  मृगण्यवो  दोषा  वस्तोर्हविषा  नि  ह्वयामहे ।
युवं   होत्रामृतुथा   जुह्वते   नरेषं   जनाय   वहथः  शुभस्पती ॥4॥

आदित्य - देव  का आवाहन  है  हम  हवि - भाग  उन्हें  देते  हैं ।
रिमझिम  बरसात  वही  देते  हैं  अन्न - धान  वे  ही  देते  हैं ॥4॥

9214
युवां  ह  धोषा  पर्यश्विना  यती  राज्ञ  ऊचे दुहिता पृच्छे वां नरा ।
भूतं   मे   अह्न   उत  भूतमक्तवेSश्वावते   रथिने   शक्तमर्वते ॥5॥

हे  पावन  पूजनीय  परमेश्वर  मन  की  बात  तुम्हें  कहती  हूँ ।
प्रभु  मैं  राजकुमारी  घोषा  सख्य - भाव  से  मैं  भजती  हूँ ॥5॥

9215
युवं  कवी  ष्ठ:  पर्यश्विना  रथं  विशो न कुत्सो जरितुर्नशायथः ।
युवोर्ह  मक्षा  पर्यश्विना  मध्वासा  भरत निष्कृतं न योषणा॥6॥

हे  अश्विनीकुमार  प्रभु आ जाओ  हम  सभी  प्रतीक्षा  करते  हैं ।
तुम  मधुमय  मनमोहक हो हम बहुत प्यार तुमसे करते हैं॥6॥

9216
युवं  ह  भुज्युं  युवमश्विना  वशं  युवं शिञ्जारमुशनामुपारथुः ।
युवो  ररावा  परि सख्यमासते युवोरहमवसा सुम्नमा चके॥7॥

घोषा  आमंत्रित  करती  है  हे  अश्विनी  कुमार  तुम  आओ ।
तुम तो सबके शुभ-चिन्तक हो सुख-संतोष मुझे  दे जाओ॥7॥

9217
युवं  ह  कृशं  युवमश्विना  शयुं युवं विधन्तं विधवामुरुष्यथः ।
युवं  सनिभ्यः स्तनयन्तमश्विनाप व्रजमूर्णुथः सप्तास्यम्॥8॥

तुम्हीं  सुरक्षा  देते  प्रभु - वर  तुम  ही  हो  सबके  आधार ।
गो - माता  के  तुम  रक्षक  हो  सबका  करते  बेडा - पार ॥8॥

9218
जनिष्ट  योषा  पतयत्कनीनको  वि  चारुहन्वीरुधो दंसना अनु ।
आस्मै रीयन्ते निवनेव सिन्धवोSस्मा अह्ने भवति तत्पतित्वनम्॥9॥

हे  परमेश्वर  तुम  समर्थ  हो  तुम  अभीष्ट  सबको  देते  हो ।
मुझको सुख-सौभाग्य मिला है तुम सबका दुख हर लेते हो॥9॥

9219
जीवं रुदन्ति वि मयन्ते अध्वरे दीर्घामनु प्रसितिं दीधियुर्नरः।
वामं पितृभ्यो य इदं समेरिरे मयःपतिभ्यो जनयःपरिष्वजे॥10॥

पत्नी   को   जो   सुख   देते   हैं  सन्तति  की  रक्षा  करते  हैं ।
पत्नी  भी  सदा  समर्पित  रहती  ऐसे घर में प्रभु रहते हैं॥10॥

9220
न तस्य विद्म तदु षु प्र वोचत युवा ह यद्युवत्या: क्षेति योनिषु।
प्रियोस्त्रियस्य वृषभस्य रेतिनो गृहं गमेमाश्विना तदुश्मसि॥11॥

प्रभु मैं पति-सुख से वञ्चित हूँ परिणय-सुख की अभिलाषा है ।
प्रणय-रसिक मुझको मिल जाए नयन-गिरा की यह भाषा है॥11॥

9221
आ वामगन्त्सुमतिर्वाजिनीवसू न्यश्विना हृत्सु कामा अयंसत ।
अभूतं गोपा मिथुना शुभस्पती प्रिया अर्यम्णो दुर्यॉ अशीमहि॥12॥

तुम  ही  मेरे  शुभ-चिन्तक  हो  प्रभु मुझ पर दया-दृष्टि रखना ।
पति  का  संरक्षण  मिल  जाए  मनो-कामना  पूरी करना ॥12॥

9222
ता  मन्दसाना  मनुषो  दुरोण आ  धत्तं रयिं सहवीरं वचस्यवे ।
कृतं तीर्थं सुप्रपाणं शुभस्पती अथाणुं पथेष्ठामप दुर्मतिं हतम्॥13॥

हे  प्रभु  तुम  धन  वैभव  देना  सुख - सन्तति  देना  भर - पूर ।
पति - गृह  में सब सुखी रहें प्रभु रोग--शोक हो कोसों दूर ॥13॥

9223
क्व  स्विदद्य  कतमास्वश्विना  विक्षु दस्त्रा मादयेते शुभस्पती ।
क ईं नि येमे  कतमस्य जग्मतुर्विप्रस्य वा यजमानस्य वा गृहम्॥14॥

अभी  है  कहॉ  बसेरा  प्रभु-वर  किसे  मिला है यह सौभाग्य ।
प्रेम- डोर में कहॉ बँधे हो किसे मिला यह सुख-साम्राज्य॥14॥        
 
             

2 comments:

  1. हे पावन पूजनीय परमेश्वर मन की बात तुम्हें कहती हूँ ।
    प्रभु मैं राजकुमारी घोषा सख्य - भाव से मैं भजती हूँ ॥5॥
    प्रभु सखा भी है और मन का मीत भी..

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  2. शिक्षा रूप में मिलती जीवन जीने की कला।

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