Monday 3 March 2014

सूक्त - 14

[ऋषि- -यम वैवस्वत । देवता- यम । छन्द- त्रिष्टुप्- अनुष्टुप्- बृहती ।]

8903
परेयिवांसं  प्रवतो  महीरनु बहुभ्यः पन्थामनुपस्पशानम् ।
वैवस्वतं सङ्गमनं जनानां यमं राजानं हविषा दुवस्य॥1॥

हे  प्रभु  उत्तम  जीवन  देना  उत्तम  हो  आचार - विचार ।
हम  उत्तम  पथ  के  राही  हों  उत्तम  हो आहार-विहार॥1॥

8904
यमो  नो  गातुं  प्रथमो  विवेद  नैषा  गव्यूतिरपभर्तवा  उ ।
यत्रा नः पूर्वे पितरःपरेयुरेना जज्ञाना:पथ्या3 अनु स्वाहा॥2॥

पूर्व-पिता जिस राह से गुजरे हमको भी उस पथ पर जाना है।
मौत से कोई बच नहीं सकता यह रिश्ता  बहुत पुराना है॥2॥

8905
मातली  कव्यैर्यमो  अङ्गिरोभिर्बृहस्पतिरृकवभिर्वाववृधानः।
यॉश्च देवा वावृधुर्ये च देवान्त्स्वाहान्ये स्वधान्ये मदन्ति॥3॥

अन्वेषण  है  शेष  गगन  का  यह  है  अति-आवश्यक काम ।
ऋषियों  का  भी योगदान हो तब होगी उपलब्धि ललाम ॥3॥

8906
इमं  यम  प्रस्तरमा  हि  सीदाङ्गिरोभिः  पितृभिः संविदानः ।
आ त्वा मन्त्रा:कविशस्ता वहन्त्वेना राजन्हविषा मादयस्व॥4॥

हे  यम  आओ  आवाहन  है  अर्पित  है  तुमको  हवि - भोग ।
हम भी नचिकेता हैं प्रभु जी तुम हमें भी दे दो ज्ञान-योग ॥4॥

8907
अङ्गिरोभिरा  गहि  यज्ञियेभिर्यम  वैरूपेरिह  मादयस्व ।
विवस्वन्तं हुवे यः पिता तेSस्मिन्यज्ञे बर्हिष्या निषद्य॥5॥

हे  सूर्य - पुत्र  हे  परम-मित्र आओ  बैठो  कुश-आसन पर ।
आदित्य-देव भी आए हैं आनंदित हों तुमको लख-कर॥5॥

8908
अङ्गिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां  वयं  सुमतौ यज्ञियानामपि  भद्रे सौमनसे स्याम॥6॥

सोम के इच्छुक पितर हमारे आवाहन  करने  पर आए हैं । 
ज्ञान-तपस्या के विग्रह हैं हम उनकी दया-दृष्टि पाए हैं॥6॥

8909
प्रेहि  प्रेहि  पथिभिः  पूर्व्येभिर्यत्रा:  नः  पूर्वे  पितरः  परेयुः ।
उभा राजाना स्वधया मदन्ता यमं पश्यासि वरुणं च देवम्॥7॥

पूर्व-पिता  के  पथ  पर  तो   ही हम  सबको  चलते  जाना  है ।
वरद - हस्त  पाथेय  बनेगा अमृत  पी - कर बढते जाना है॥7॥

8910
सं   गच्छस्व  पितृभिः  सं  यमेनेष्टापूर्तेन  परमे  व्योमन् ।
हित्वायावद्यं पुनरस्तमेहि ससं गच्छस्व तन्वा सुवर्चा:।॥8॥
 
हम  सबको  कर्मानुरूप  ही  पथ  पर  मिल  जाएगी छाया ।
 हम हैं अजर-अमर आत्मा घट-घट में वह ब्रह्म समाया॥8॥

8911
अपेत  वीत  वि  च सर्पतातोSस्मा एतं पितरो लोकमक्रन् ।
अहोभिरद्भिरक्तुभिर्व्यक्तं     यमो    ददात्यवसानमस्मै ॥9॥

दुष्ट - कर्म  करके  प्राणी  जब  देह - त्याग  करके जाता है ।
सुख-कर राह नहीं मिलती है पुनः पुनः वह पछताता है॥9॥

8912
अति  द्रव  सारमेयौ  श्वानौ  चतुरक्षौ  शबलौ  साधुना  पथा ।
अथा पितृन्त्सुविदत्रॉ उपेहि यमेन ये सधमादं मदन्ति॥10॥

एक - एक  दिन  बीत  रहा है अब तो सज्जन का सँग करो ।
प्रभु के प्रति समर्पित हो कर राज-योग सँग ध्यान धरो॥10॥

8913
यौ  ते  श्वानौ  यम  रक्षितारौ  चतुरक्षौ  पथिरक्षी  नृचक्षसौ ।
ताभ्यामेनं परि देहि राजन्त्स्वस्ति चास्मा अनमीवं च धेहि॥11॥

हे  यम  रक्षा  करो  हमारी  इस  तन - मन  को  दो  आरोग्य ।
प्रति - पल  बढता  हूँ  पास तुम्हारे कर्मानुसार पाना है भोग्य॥11॥

8914
उरूणसावसुतृपा  उदुम्बलौ  यमस्य  दूतौ  चरतो  जनॉ  अनु ।
तावस्मभ्यं   दृशये   सूर्याय   पुनर्दातामसुमद्येह   भद्रम् ॥12॥

यम  से  बचना  नामुमकिन  है  उनका  कर्तव्य प्राण हरना है ।
यह देह-त्याग आनन्द-रूप हो वैसे भी तो सबको मरना है॥12॥

8915
यमाय  सोमं  सुनुत  यमाय  जुहुता  हविः ।
यमं ह यज्ञो गच्छत्यग्निदूतो अरङ्कृतः॥13॥

हे अग्नि - देव  हे  यज्ञ - दूत  देवताओं  को  दे  दो  हवि-भोग ।
हे यम तुम सोम-पान कर लो सोम में है औषधि का योग॥13॥

8916
यमाय  घृतवध्दविर्जुहोत  प्र   च   तिष्ठत ।
स नो देवेष्वा यमद्दीर्घमायुः प्र जीवसे॥14॥

हे  यम - देव  प्रणम्य  तुम्हीं हो नमन है तुमको बारम्बार ।
दीर्घ-आयु तुम देना प्रभुवर तुम ही तो पहुँचाते हो पार॥14॥

8917
यमाय        मधुमत्तमं       राज्ञे       हव्यं     जुहोतन ।
इदं नम ऋषिभ्यः पूर्वजेभ्यः पूर्वेभ्यः पथिकृद्भयः॥15॥

हे  यम - देव  यही  विनती है ग्रहण करो तुम हविष्यान्न ।
सत्पथ पर तुम ही पहुँचाना चरैवेति का हो अभियान॥15॥

8918
त्रिकद्रुकेभिः        पतति        षळुवीरेकमिद्बृहत् ।
त्रिष्टुब्गायत्री छन्दांसि सर्वा ता यम आहिता॥16॥

हे   यम   रक्षा   करो   हमारी  देते  रहना  तुम  धन - धान ।
सत्पथ पर हम चलें निरंतर बनना प्रेरक रखना ध्यान॥16॥    



       

3 comments:

  1. यम से बचना नामुमकिन है उनका कर्तव्य प्राण हरना है ।
    यह देह-त्याग आनन्द-रूप हो वैसे भी तो सबको मरना है॥12॥

    मृत्यु का स्वागत भी वैसे ही हो जैसे जन्म का...

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  2. मृत्यु के दर्शन में जीवन का आनन्द ढूँढा हमने।

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  3. अद्भुत सूक्त...

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