Saturday 15 March 2014

॥ अथ दशमं मण्डलम् ॥

                                     सूक्त -  1 

[ऋषि- त्रित आप्त्य । देवता- अग्नि । छन्द- त्रिष्टुप् ।]

8799
अग्रे बृहन्नुषसामूर्ध्वो अस्थान्निर्जगन्वान्तमसो ज्योतिषागात् ।
अग्निर्भानुना  रुशता  स्वङ्ग  आ  जातो  विश्वा  सद्मान्यप्रा: ॥1॥ 

अग्नि - देव  आलोक - प्रदाता  प्रभु  अन्धकार  को  कर दो  दूर ।
वे  तेज - पुञ्ज  वे  तपोनिष्ठ  आलोक   हमें  दे  दो  भर - पूर॥1॥

8800
स   जातो   गर्भो   असि   रोदस्योरग्ने   चारुर्विभृत   ओषधीषु ।
चित्रः शिशुः परि तमांस्यक्तून्प्र मातृभ्यो अधि  कनिक्रदद्गा: ॥2॥

अन्तरिक्ष  में  और  अवनि  में  सुख  के  हो  तुम  ही  आधार ।
औषधि को तुम  ही  रस  देते  पावस  का  करते  विस्तार  ॥2॥

8801
विष्णुरित्था परममस्य विद्वाञ्जातो बृहन्नभि पाति तृतीयम् ।
आसा  यदस्य  पयो  अक्रत  स्वं  सचेतसो  अभ्यर्चन्त्यत्र ॥3॥

वैज्ञानिक  अन्वेषण   करते    होते    रहते    हैं   अनुसन्धान ।
पावक  के  माध्यम  से  ही  तो  द्रव  का  होता है अनुमान ॥3॥

8802
अत   उ  त्वा  पितुभृतो  जनित्रीरन्नावृधं   प्रति  चरन्त्यन्नैः ।
ता  ईं प्रत्येषि पुनरन्यरूपा असि त्वं विक्षु मानुषीषु  होता ॥4॥

हे  अग्नि- देव तुम औषधियों  का  और अन्न  का  देते  दान ।
हम  हवि-भोग तुम्हें  देते  हैं तुम  पहुना  हो कृपा- निधान ॥4॥

8803
होतारं   चित्ररथमध्वरस्य   यज्ञस्ययज्ञस्य   केतुं   रुशन्तम् ।
प्रत्यर्धिं देवस्यदेवस्य मह्ना श्रिया त्व1ग्निमतिथिं जनानाम्॥5॥

हम है प्रजा तुम्हारी  भगवन  तुम वन्दनीय नमनीय तुम्हीं हो ।
यश - वैभव तुम  ही  देते  हो  मेरे  सखा - सदृश तुम  ही हो ॥5॥

8804
स   तु  वस्त्राण्यध   पेशनानि   वसानो   अग्निर्नाभा   पृथिव्या: ।
अरुषो  जातः  पद   इळाया:  पुरोहितो  राजन्यक्षीह   देवान् ॥6॥

हे   देदीप्यमान   तेजस्वी  तुम   ही  जगती  के  स्वर्ण - पत्र  हो ।
प्रभु  हवि- भोग ग्रहण कर लो तुम्हीं बॉसुरी तुम्हीं  शस्त्र  हो ॥6॥

8805
आ  हि  द्यावापृथिवी अग्न  उभे  सदा  पुत्रो  न  मातरा  ततन्थ ।
प्र     याह्यच्छोशतो    यविष्ठाथा    वह    सहस्येह    देवान्   ॥7॥

धरा - गगन  तुमसे  पाता  है   अपना  अति व्यापक  विस्तार ।
सज्जन पाते सान्निध्य तुम्हारा सुख के हो तुम ही आगार॥7॥                

3 comments:

  1. अद्भुत और उत्कृष्ट काव्यानुवाद किया है आपने, आपको शत शत साधुवाद।

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  2. बहुत ही प्रवाहमय और बोधगम्य अनुवाद....आभार

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  3. सुंदर रचना...रंगों से सराबोर होली की शुभकामनायें...

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