Monday 21 April 2014

सूक्त - 75

[ऋषि- कवि भार्गव । देवता- पवमान सोम । छन्द- जगती ।]

8367
अभि प्रियाणि पवते चनोहितो नामानि यह्वो अधि येषु वर्धते ।
आ सूर्यस्य बृहतो बृहन्नधि रथं विष्वञ्चमरुहद्विचक्षणः ॥1॥

परमेश्वर  की  रचना  सुन्दर  वसुधा  तरु - वर  ताल  गगन ।
औषधियॉ अति आकर्षक  हैं  चलो उधर  ही  करें  गमन ॥1॥

8368
ऋतस्य जिह्वा पवते मधु प्रियं वक्ता पतिर्धियो अस्या अदाभ्यः।
दधाति पुत्रः पित्रोरपीच्यं1 नाम  तृतीयमधि  रोचने  दिवः ॥2॥

कर्म  स्वतंत्र  यहॉ  हम  सब  हैं  कर्मानुकूल  फल  हम पाते  हैं ।
पिता  वही  है  इसीलिए  हम  उसे  क़रीब  से  अपनाते  हैं  ॥2॥

8369
अव द्युतानः कलशॉ अचिक्रदन्नृभिर्येमानःकोश आ हिरण्यये ।
अभीमृतस्य दोहना अनूषताधि त्रिपृष्ठ उषसो  वि  राजति ॥3॥

प्रभु - उपासना  जो  करते  हैं  प्रभु  से  वे  तेज -ओज  पाते  हैं ।
परमेश्वर  अन्तः  मन  में  रहते  वही  प्रेम  से  अपनाते  हैं ॥3॥

8370
अद्रिभिः सुतो मतिभिश्चनोहितः प्ररोचयन्रोदसी मातरा शुचिः ।
रोमाण्यव्या समया वि धावति मधोर्धारा पिन्वमाना दिवेदिवे॥4॥

पावन  पूज्य  प्रणम्य  वही  है  सदा  प्यार  हमको  करता  है ।
हम  सबकी  रक्षा  करता  है  विपदा  भी  वह  ही  हरता है ॥4॥

8371
परि सोम प्र धन्वा स्वस्तये नृभिः पुनानो अभि वासयाशिरम् ।
ये ते मदा आहनसो विहायसस्तेभिरिन्द्रं चोदय दातवे मघम्॥5॥

जो  परमेश्वर  पर  ही  निर्भर  हैं  प्रभु  ही  देते  हैं  उन्हें  सहारा ।
वही  सुरक्षा  देता  सबको  वह  है  नटवर -  नागर -  न्यारा ॥5॥  

1 comment:

  1. सुन्दर अनुवाद और रूपांतरण...

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