Saturday 21 March 2015

केरल कितना हरा - भरा है

केरल कितना हरा - भरा है खाने को मिलता काजू -केला
ओणम  में  केरल आ जाओ घर - ऑगन में लगता मेला ।

केरल में रहती है कविता पर उसके दोनों - हाथ  नहीं  हैं
पॉव - हाथ  बन  गए  हैं उसके हो जाता हर काम सही है ।

कविता खुश है आज है ओणम नवा धान पाने का अवसर
ऑगन में अल्पना सजेगी चौक  फूल  से  बनती अक्सर ।

कविता  ने  अपने ऑगन  में  फूलों  से अल्पना - बनाई
फिर  पत्तों  को ऑचल  जैसे  वह अपनी अल्पना सजाई ।

इतनी सुंदर बनी अल्पना अद्भुत अद्वितीय और अनुपम
उसकी कला के कायल सब है  बनी अल्पना  सुन्दरतम ।

दुनियॉ भर में अब है चर्चित कविता की वह सुंदर रचना
कविता ने सोचा भी न था कभी भी ऐसा सुन्दर - सपना ।

हर  कोई  यह  जान  गया  है नहीं  हैं उस के दोनों - हाथ
फिर  भी लडकों में होड मची है सभी चाहते उसका साथ ।

कविता बोझ बनी थी घर पर आज सभी को है अभिमान
पॉच - लाख देकर केरल ने किया है कविता का सम्मान ।

वैभव - लक्ष्मी घर में आई घर का  बदल  गया  व्यवहार
कल  तक  भोजन  के  लाले  थे अब  मिलता है फलाहार ।

शब्द - सयाना  सा  लडका है वह कविता से करता प्यार
दो -  बीघा  ज़मीन  है  उसकी  कर  बैठा  है  वह  इज़हार ।

दोनों  का  घर आसपास  है  एक - दूजे  से  वे परिचित हैं
शब्द  भा  गया  है  कविता को आगे दोनों की किस्मत है ।

घर  भी  खुश  है  इस  रिश्ते  से  बहुत  पुरानी  है पहचान
गुण - दोषों  पर  भारी पडता गुण की परख भी है आसान ।

फिर अल्पना बनेगी सुन्दर कविता का है आज निश्चयम
दूल्हा - सजा - धजा  बैठा  है  बाराती  हैं  आप  और  हम ।  

2 comments:

  1. असमर्थता मन की होती है, तन की नहीं...अगर मन में लगन हो तो कोई भी शारीरिक कमी रास्ते की बाधा नहीं बन सकती...बहुत सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति...आभार

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