Friday 26 May 2017

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के जन्मदिवस के पावन पर्व पर

 आल्हा छंद - 16/15 -$।

एक बार फिर तुम आ जाओ

एक बार फिर तुम आ जाओ, समझाओ माटी का मोल
हम - सोए हैं हमें - जगाओ, करो हमारा बिस्तर - गोल ।

राह - झलमला दिखलाता है, बन - जाता है - ज्ञानालोक
फिर भी मंजिल दूर भगाती, बिखर-बिखर जाता है श्लोक।

कैसे - हो साहित्य - साधना, कहाँ हो गयी - हमसे - भूल
हम - ज़मीन से दूर हो गए, भूल - गए  हैं निर्मल - मूल ।

सरस्वती के वरद - पुत्र - तुम, दे - कर गए हमें  वरदान
जानें माटी की महिमा हम, जाग - उठे यह हिन्दुस्तान ।

छ्त्तीसगढ की गोद - बुलाए, आओ फिर से पुन्ना- लाल
सोंधी- सोंधी खुशबू -आए, चमक - उठे भारत का भाल ।

शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छ्त्तीसगढ

2 comments:

  1. भावपूर्ण कविता..पूज्य पदुमलाल जी को सादर नमन व श्रद्धांजलि !

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  2. बहुत ख़ूबसूरत अहसास और उनकी अभिव्यक्ति...नमन

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